निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया है। कोर्ट ने फांसी के लिए 22 जनवरी सुबह 7 बजे का समय तय


दिल्ली की एक कोर्ट ने निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट या ब्लैक वारंट जारी कर दिया है। कोर्ट ने फांसी के लिए 22 जनवरी सुबह 7 बजे का समय तय किया है। डेथ वारंट जेल प्रभारी को संबोधित करते हुए भेजा जाता है, जहां मृत्युदंड की सजा पाए दोषी को कैद करके रखा जाता है। इस वारंट में दोषी के नाम के साथ ही मौत की सजा की पुष्टि भी होती है। इतना ही नहीं, इस वारंट में दोषी को फांसी देने के समय और स्थान का भी जिक्र होता है। साथ ही ब्लैक वारंट में उस जज के हस्ताक्षर भी होते हैं, जिसने दोषी को मौत की सजा सुनाई होती है।


डेथ वारंट के जरिए बताया जाता है कि दोषी को किस दिन, किस वक्त पर फांसी दी जाएगी। डेथ वारंट जारी होने के बाद अब निर्भया के गुनहगार आजादी के बाद भारत में फांसी पाने वाले ये 58वें, 59वें, 60वें और 61वें दोषी होंगे। आखिरी बार फांसी 1993 के बम धमाके में दोषी याकूब मेमन को 2015 में दी गई थी। बता दें कि कसाब, अफजल गुरू और याकूब मेमन को फांसी किसी पेशेवर जल्लाद ने नहीं, बल्कि जेल के कर्मचारी ने दी थी।  




तिहाड़ में जो फांसी घर है उसके तख्त की लंबाई करीब दस फीट है, जिसके ऊपर दो दोषियों को आसानी से खड़ा किया जा सकता है। इस तख्त के ऊपर लोहे की रॉड पर दो दोषियों के लिए फंदे लगाने होंगे। तख्त के नीचे भी लोहे की रॉड होती है, जिससे तख्त खुलता और बंद होता है। इस रॉड का कनेक्शन तख्त के साइड में लगे लिवर से होता है। लिवर खींचते ही नीचे की रॉड हट जाती है और तख्त के दोनों सिरे नीचे की तरफ खुल जाते हैं, जिससे तख्त पर खड़ा दोषी के पैर नीचे झूल जाते हैं। हालांकि जेल प्रशासन का कहना है कि वह दोषियों को एक-एक कर फांसी देंगे। 





जेल अधिकारियों के मुताबिक, दोषियों के वजन के हिसाब से फंदे की रस्सी की लंबाई तय होती है। तख्त के नीचे की गहराई करीब 15 फीट है, ताकि फंदे पर लटकने के बाद झूलते पैर का फासला हो। कम वजन वाले दोषी को लटकाने के लिए रस्सी की लंबाई ज्यादा रखी जाती है, जबकि भारी वजन वाले के लिए रस्सी की लंबाई कम रखी जाती है। सूत्रों का कहना है कि अफजल की फांसी के ट्रायल के दौरान दो बार रस्सी टूट गई थी।   




फांसी दिए जाने से पहले दोषी अगर वसीयत तैयार करना चाहता है और अपने रिश्तेदार से मिलने की ख्वाहिश करता है तो उसे इस बात की इजाजत दी जाती है। वसीयत तैयार करने के दौरान मजिस्ट्रेट को जेल में बुलाया जाता है। फांसी के दिन दोषी को नहाने के बाद पहनने के लिए नए कपड़े दिए जाते हैं।

फंदे पर लटकाने की यह होती है प्रक्रिया

दोषी को तैयार करने के बाद मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में दोषी को सेल से फांसी के तख्ते पर ले जाया जाता है। इस दौरान उसके चेहरे को कपड़े से ढक दिया जाता है ताकि वह आसपास चल रही गतिविधि को नहीं दे सके। फांसी के तख्ते तक ले जाने के दौरान मौत को सामने देखकर दोषी चल नहीं पाता है। ऐसी स्थिति में उसके साथ चल रहे पुलिसकर्मी उसे सहारा देकर ले जाते हैं। जेल मैन्युअल के अनुसार, इस दौरान एक डॉक्टर, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, जेलर, डिप्टी जेलर और करीब 12 पुलिसकर्मी मौजूद रहते हैं।  




फांसी घर में एकदम खामोशी होती है। यहां सारी कार्यवाही इशारों में होती है। ब्लैक वारंट में तय समय पर दोषी को वहां लाकर उसकी गर्दन में फंदा पहनाया जाता है, फिर जेलर के रुमाल गिराकर इशारा करने पर जल्लाद या फिर जेल का कर्मचारी लिवर को खींच देता है। लिवर खींचते ही तख्त खुल जाता है और फंदा पर लटका दोषी नीचे चला जाता है। कुछ देर बाद डॉक्टर वहां पहुंचकर उसकी जांच करता है। धड़कन बंद होने की पुष्टि होने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। उसके बाद उसे फंदे से उतार लिया जाता है।